बिहार प्रांत के एक गाँव में पैदा हुई। विवाहोपरांत सीधे महानगर दिल्ली लाई गई। वह जीवन और यह जीवन। क्या खोया, क्या पाया के अनिर्णित द्वंद्व में विचरण करती। बीए में हिंदी साहित्य के सागर से एमए में सीधे 'ग्रामीण विकास' (रूरल डेवेलपमेंट) के धरातल पर पटक दी गई। इस निर्णय में कुछ भागीदारी मेरी भी थी। कभी ग्राम्य जीवन को जीने वाली आज उससे बाहर निकल कर उसे किताबों में ढ़ूँढ़ रही है। अब प्रेमचंद से निकल कर ए.आर. देसाई और एस.सी. दूबे के समाजशास्त्रीय नज़रिए से उसे देखने की कोशिश कर रही है। अपने ही लोगों को उधार की आँखों से देखने का यत्न है यह या प्रबोधन की शर्त को अपनाने की आत्मस्वीकृति। आप ही बताएंगे। इस चिट्ठाजगत में नई हूँ। मन में उठने वाले साझेय विचार अब आपको समर्पित होंगे।
"कभी ग्राम्य जीवन को जीने वाली आज उससे बाहर निकल कर उसे किताबों में ढ़ूँढ़ रही है।" सुन्दर लिखा है. साधुवाद.
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जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
आपके विचार जानने की जिज्ञासा बनी रहेगी ।
ReplyDeleteअच्च्छा प्रयास है गाँव के दिगदर्शन का. आशा है महानगर की भीड़ में गाँव की धूल को नहीं भूलॉगी.
ReplyDeletehttp://khandoi.blogspot.com
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
आशा है आपसे गाँव के दशा और दिशा के सुधार हेतु कुछ नई जानकारियाँ मिल सकेंगी, आपका स्वागत है ...
ReplyDeleteगाँव की गलियों से ......
http://subhash-gajendra.blogspot.com
वाह कितना ही खूबसूरत परिचय आपने अपना दिया है. मन झूम उठा पढके.
ReplyDeleteइस गर्मी में शीतल झोंके सा लगा.
us jagat se is jagat men....is jagat se kahaan... aaadmi maaraa-maaraa firtaa hai yahaan se vahaan....aapke yahaan ke safar ke safal hone kee kaamnaa ke saath....!!
ReplyDeleteबहुत डरी थी अपना पहला पोस्ट लिखते हुए. शब्दों के चयन से लेकर भावों की अभिव्यक्ति तक में कई बार लिखा और मिटाया लेकिन आप सब ने जो उत्साह बढ़ाया है और स्नेह जताया है उसे देखकर भाव विह्वल हो उठी हूँ. ई-गुरु राजीव जी ने तकनीकी मदद की जो पेशकश की है इसके लिए उनका विशेष रूप से धन्यवाद. वर्ड वेरीफिकेशन हटा दिया गया है. आप सबों की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयत्न करूंगी. महानगरीय जीवन में संवेदनाओं के खो जाने के बारे में सुनती-पढ़ती रही हूँ. इसी डर ने यहाँ ले आया है. यहीं पर सब कुछ समेट कर, सँजों कर रख लूँ.
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